Today isShree Ram Navmi. I have not found any translation or Shree ram chandra kripalu bhajman Shloka.
So here I present the hindi/sanskrit shloka of “shree ram chandra kripalu bhajman”.
बोलो सीता राम दरबार की जय.
श्रीरामचंद्र कृपालु भजु मन हरण भवभय दारुणं,
नवकंज लोचन, कंजमुख कर, कंज पद कंजारुणं.कंदर्प अगणित अमित छवि नव नील नीरज सुन्दरम,
पट पीत मानहु तडित रूचि-शुची नौमी, जनक सुतावरं.भजु दीनबंधु दिनेश दानव दैत्य वंष निकन्दनं,
रघुनंद आनंद कंद कोशल चन्द्र दशरथ नंदनम.सिर मुकुट कुंडल तिलक चारू उदारु अंग विभुशनम,
आजानुभुज शर चाप-धर, संग्राम-जित-खर दूषणं.इति वदति तुलसीदास, शंकर शेष मुनि-मन-रंजनं,
मम ह्रदय कंज निवास कुरु, कामादि खल-दल-गंजनं.एही भांति गोरी असीस सुनी सिय सहित हिं हरषीं अली,
तुलसी भावानिः पूजी पुनि-पुनि मुदित मन मंदिर चली.जानी गौरी अनूकोल, सिया हिय हिं हरषीं अली,
मंजुल मंगल मूल बाम अंग फरकन लगे.
बोल सीता राम दरबार की जय.
बोल सिया वर राम चन्द्र की जय.
पवन सुत हनुमान की जय.
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Very nise
bahut achchha
रामस्तुति
श्रीरामचंद्र कृपालु भजु मन हरण भवभय दारुणं,
नवकंज लोचन, कंजमुख कर, कंज पद कंजारुणं
व्याख्या- हे मन! कृपालु श्रीरामचंद्रजी का भजन कर. वे संसार के जन्म-मरण रूप दारुण भय को दूर करने वाले है. उनके नेत्र नव-विकसित कमल के समान है. मुख-हाथ और चरण भी लालकमल के सदृश हैं.
कंदर्प अगणित अमित छवि नव नील नीरद सुन्दरम,
पट पीत मानहु तडित रूचि-शुची नौमी, जनक सुतावरं.
व्याख्या-उनके सौंदर्य की छ्टा अगणित कामदेवो से बढ्कर है. उनके शरीर का नवीन नील-सजल मेघ के जैसा सुंदर वर्ण है. पीताम्बर मेघरूप शरीर मे मानो बिजली के समान चमक रहा है. ऐसे पावनरूप जानकीपति श्रीरामजी को मै नमस्कार करता हू.
भजु दीनबंधु दिनेश दानव दैत्य वंश निकन्दनं,
रघुनंद आनंद कंद कोशल चन्द्र दशरथ नंदनम.
व्याख्या-हे मन! दीनो के बंधू, सुर्य के समान तेजस्वी , दानव और दैत्यो के वंश का समूल नाश करने वाले,आनन्दकंद, कोशल-देशरूपी आकाश मे निर्मल चंद्र्मा के समान, दशरथनंदन श्रीराम का भजन कर.
सिर मुकुट कुंडल तिलक चारू उदारु अंग विभुषणं,
आजानुभुज शर चाप-धर, संग्राम-जित-खर दूषणं.
व्याख्या- जिनके मस्तक पर रत्नजडित मुकुट, कानो मे कुण्डल, भाल पर तिलक और प्रत्येक अंग मे सुंदर आभूषण सुशोभित हो रहे है. जिनकी भुजाए घुटनो तक लम्बी है. जो धनुष-बाण लिये हुए है. जिन्होने संग्राम मे खर-दूषण को जीत लिया है.
इति वदति तुलसीदास, शंकर शेष मुनि-मन-रंजनं,
मम ह्रदय कंज निवास कुरु, कामादि खल-दल-गंजनं.
व्याख्या- जो शिव, शेष और मुनियो के मन को प्रसन्न करने वाले और काम,क्रोध,लोभादि शत्रुओ का नाश करने वाले है. तुलसीदास प्रार्थना करते है कि वे श्रीरघुनाथजी मेरे ह्रदय कमल मे सदा निवास करे.
मनु जाहि राचेउ मिलिहि सो बरु सहज सुंदर सावरो.
करुना निधान सुजान सीलु सनेहु जानत रावरो.
व्याख्या-जिसमे तुम्हारा मन अनुरक्त हो गया है, वही स्वभाव से ही सुंदर सावला वर (श्रीरामचंद्रजी) तुमको मिलेगा. वह दया का खजाना और सुजान (सर्वग्य) है. तुम्हारे शील और स्नेह को जानता है.
एही भांति गौरी असीस सुनी सिय सहित हिय हरषीं अली,
तुलसी भावानिः पूजी पुनि-पुनि मुदित मन मंदिर चली.
व्याख्या- इस प्रकार श्रीगौरीजी का आशीर्वाद सुनकर जानकीजी समेत सभी सखिया ह्रदय मे हर्सित हुई. तुलसीदासजी कहते है-भवानीजी को बार-बार पूजकर सीताजी प्रसन्न मन से राजमहल को लौट चली.
जानी गौरी अनुकूल, सिय हिय हरषु न जाइ कहि
मंजुल मंगल मूल बाम अंग फरकन लगे.
व्याख्या-गौरीजी को अनुकूल जानकर सीताजी के ह्रदय मे जो हरष हुआ वह कहा नही जा सकता. सुंदर मंगलो के मूल उनके बाये अंग फडकने लगे.
रामावतार
भये प्रगट कृपाला दीनदयाला कौसल्या हितकारी .
हरषित महतारी मुनि मन हारी अद्भुत रूप बिचारी ..
व्याख्या- दीनो पर दया करने वाले , कौसल्याजी के हितकारी कृपालु प्रभु प्रकट हुए. मुनियो के मन को हरने वाले उनके अदभुत रूप का विचार करके माता हर्ष से भर गयी.
लोचन अभिरामा तनु घनस्यामा निज आयुध भुज चारी .
भूषन वनमाला नयन बिसाला सोभासिन्धु खरारी ..
व्याख्या-नेत्रो को आनंद देने वाला मेघ के समान श्याम शरीर थ, चारो भुजाओ मे अपने (खास) आयुध (धारण किये हुए) थे, (दिव्य) आभूषण और वनमाला पहने थे,बडे-बडे नेत्र थे. इस प्रकार शोभा के समुद्र तथा
खर दानव को मारनेवाले भगवान प्रकट हुए.
कह दुइ कर जोरी अस्तुति तोरी केहि बिधि करौं अनंता .
माया गुन ग्यानातीत अमाना वेद पुरान भनंता ..
व्याख्या-दोनो हाथ जोडकर माता कहने लगी-हे अनंत! मै किस प्रकार तुम्हारी स्तुति करू. वेद और पुराण
तुमको माया,गुण और ग्यान से परे और परिमाणरहित बतलाते है.
करुना सुख सागर सब गुन आगर जेहि गावहिं श्रुति संता .
सो मम हित लागी जन अनुरागी भयउ प्रकट श्रीकंता ..
व्याख्या- श्रुतिया और संतजन दया और सुख का समुद्र, सब गुणो का धाम कहकर जिनका गान करते है, वही भक्तो पर प्रेम करने वाले लक्ष्मीपति भगवान मेरे कल्याण के लिये प्रकट हुए है.
ब्रह्मांड निकाया निर्मित माया रोम रोम प्रति बेद कहै .
मम उर सो बासी यह उपहासी सुनत धीर मति थिर न रहै
व्याख्या- वेद कहते है कि तुम्हारे प्रत्येक रोम मे माया के रचे हुए अनेको ब्रम्हाण्डो के समूह (भरे) है. वे तुम मेरे गर्भ मे रहे-इस हसी की बात के सुनने पर धीर (विवेकी) पुरूषो की बुद्दि भी स्थिर नही रहती (विचलित हो जाती है).
उपजा जब ग्याना प्रभु मुसुकाना चरित बहुत बिधि कीन्ह चहै .
कहि कथा सुहाई मातु बुझाई जेहि प्रकार सुत प्रेम लहै.
व्याख्या-जब माताको ग्यान उत्पन्न हुआ, तब प्रभु मुसकराये. वे बहुत प्रकार के चरित्र करना चाहते है. अतः उन्होने (पूर्वजन्म की) सुंदर कथा कहकर माता को समझाया, जिससे उन्हे पुत्र का (वात्सल्य) प्रेम प्राप्त हो
(भगवान के प्रति पुत्रभाव हो जाय).
माता पुनि बोली सो मति डोली तजहु तात यह रूपा .
कीजे सिसुलीला अति प्रियसीला यह सुख परम अनूपा.
व्याख्या- माता की बुद्धि बदल गयी, तब वह फिर बोली- हे तात! यह रूप छोड्कर अत्यन्त प्रिय बाललीला
करो, (मेरे लिये) यह सुख परम अनुपम होगा.
सुनि बचन सुजाना रोदन ठाना होइ बालक सुरभूपा .
यह चरित जे गावहि हरिपद पावहि ते न परहिं भवकूपा.
व्याख्या- (माता का) यह वचन सुनकर देवताओ के स्वामी सुजान भगवान ने बालक (रूप) होकर रोना शुरू कर दिया. (तुलसीदासजी कहते है) जो इस चरित्र का गान करते है वे श्रीहरि का पद पाते है और (फिर) संसाररूपी कूप मे नही गिरते.
निवेदन
अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं दनुजवनकृशानुं ग्यानिनामग्रग्ण्यं
सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि
अनुवाद- अतुल बल के धाम,सोने के पर्वत (सुमेरू) के समान कांतियुक्त शरीरवाले, दैत्यरूपी वन (को ध्वंस करने) के लिये अग्निरूप, ग्यानियो मे अग्रगण्य, संपूर्ण गुणो के निधान, वानरो के स्वामी, श्रीरघुनाथजी के प्रिय भक्त पवनपुत्र श्रीहनुमानजी को मै प्रणाम करता हू.
दोहा
श्री गुरु चरण सरोज रज , निज मनु मुकुर सुधारि |
बरनउँ रघुबर बिमल जासु , जो दायकु फल चारि ||
अनुवाद- श्रीगुरूदेव के चरण-कमलो की धूलि से अपने मनरूपी दर्पण को निर्मल करके मै श्रीरघुबर के उस सुंदर यश का वर्णन करता हू जो चारो फल (धर्म,अर्थ,काम और मोक्छ) को प्रदान करने वाला है.
बुद्दिहीन तनु जानके , सुमिरौ पवन -कुमार |
बल बुद्धि विद्या देहु मोहि , हरहु कलेस विकार ||
अनुवाद- हे पवनकुमार ! मै अपने को बुद्धिहीन जानकर आपका स्मरण (ध्यान) कर रहा हू. आप मुझे बल-बुद्धि और
विदया प्रदान करके मेरे समस्त कष्टों और दोषों को दूर करने की कृपा कीजिये.
चौपाई
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर |
जय कपीस तिहुँ लोक उजागर ||
अनुवाद- ग्यान और गुणों के निधि श्रीहनुमानजी की जय हो. तीनों लोकों (स्वर्गलोक,भूलोक,पाताललोक) को अपनी कीर्ती से प्रकाशित करनेवाले कपीश्वर श्रीहनुमानजी की जय हो.
राम दूत अतुलित बल धामा |
अन्जनी पुत्र पवन सुत नामा ||
अनुवाद-हे अतुलित बल के स्वामी रामदूत हनुमानजी! आप लोक मे अंजनीपुत्र और पवनसुत के नाम से विख्यात है.
महाबीर बिक्रम बजरंगी |
कुमति निवार सुमति के संगी ||
अनुवाद- हे महावीर! आप वज्र के समान अंगो वाले और अत्यंत पराक्रमी है. आप प्राणियों की कुमति (दुर्बुद्धि) का निवारण कर उन्हें सुमति(सुबुद्धि) प्रदान करने वाले अर्थात आप मलिन-बुद्धि वाले प्राणियों को निर्मल बुद्धि बनाते है.
कंचन बरन बिराज सुबेसा |
कनन कुंडल कुंचित केसा ||
अनुवाद- आप के स्वर्ण के समान कांतिमान अंगो पर सुंदर वस्त्र , कानों में कुण्डल और घुंघराले केश सुशोभित हो रहे है.
हाथ वज्र औ ध्वजा बिराजे |
काँधे मुज जनेऊ सजे ||
अनुवाद- आप के हाथ मे वज्र (वज्र के समान कठोर गदा) और (धर्म का प्रतीक) ध्वजा विराजमान है. कंधे पर जनेऊ और मूँज की करधनी सुशोभित है.
संकर सुवन केसरीनंदन |
तेज प्रताप महा जग बंदन ||
अनुवाद-आप भगवान शंकर के अवतार और केशरीपुत्र के नाम से विख्यात है. आप (अतिशय) तेजस्वी, महान प्रतापी और समस्त जगत के वंद्नीय है.
विद्यावान गुनी अति चातुर |
राम काज करिबे को आतुर ||
अनुवाद- आप सारी विद्याओ मे संपन्न, गुण्वान और अत्यंत चतुर है. आप भगवान श्रीराम का कार्य (संसार
के कल्याण का कार्य) पूर्ण करने के लिये तत्पर (उत्सुक) रहते है.
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया |
राम लखन सीता मन बसिया ||
अनुवाद- आप प्रभु श्रीराघवेंद्र का चरित्र (उनकी पवित्र मंगलमयी कथ) सुनने के लिये सदा लालायित और उत्सुक (कथा रस के आनंद में निमग्न) रहते है. राम,लक्ष्मण और माता सीताजी सदा आपके ह्रदय में विराजमान रहते है.
सूक्ष्म रूप धरी सियहीं दिखावा |
बिकट रूप धरी लंक जरावा ||
अनुवाद- आपने अत्यंत लघु रूप धारण करके माता सीताजी को दिखाया और अत्यंत विकराल रूप धारण कर लंका नगरी को जलाया.
भीम रूप धरी असुर संहारे |
रामचंद्र के काज सँवारे ||
अनुवाद- आपने अत्यंत विशाल और भयानक रूप धारण करके राक्षसों का संहार किया.इस प्रकार विविध प्रकार से भगवान श्रीरामचंद्र्जी के कार्यो को पूरा किया.
लाये संजीवन लखन जियाये |
श्रीरघुवीर हरष उर लाये ||
अनुवाद- आपने संजीवनी बूटी लाकर लक्ष्मणजी को जिलाया. इस कार्य से प्रसन्न होकर भगवान श्रीराम ने आपको ह्रदय से लगा लिया.
रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई |
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई ||
अनुवाद- भगवान श्रीराम ने आपकी बडी प्रशंसा की. उन्होने कहा कि तुम भाई भरत के समान ही मेरे प्रिय हो.
सहस बदन तुम्हरो जस गावै |
आस कहि श्रीपति कंठ लगावै ||
अनुवाद- तुम्हारे यश का गान हजार मुखवाले श्रीशेषजी सदा करते रहेंगें. ऐसा कहकर लक्ष्मीपति विष्णुस्वरूप भगवान श्रीरामने आपको अपने ह्रदय से लगा लिया.
सनकादिक ब्रम्हादि मुनीसा |
नारद सारद सहित अहिसा ||
जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते |
कवि कोबिद कही सके कहाँ ते||
अनुवाद- श्रीसनक,सनातन,सनंदन,सनत्कुमार आदि मुनिगण ब्रम्हा आदि देवगण, नारद,सरस्वती, शेषनाग, यमराज,कुबेर जैसे विद्या,बुद्धि,शक्ति और सम्पदा के आगार तथा समस्त दिग्पाल भी आपका यश कहने में असमर्थ हैं.फिर (सांसारिक) विद्वान,कवियों की तो बात ही क्या? अर्थात आपका यश अवर्णनीय है.
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा |
राम मिलाये राज पद दीन्हा ||
अनुवाद- आपने वानरराज सुग्रीव का महान उपकार किया तथा उन्हें भगवान श्रीराम से मिलाकर (बालि वध के उपरांत) राजपद प्राप्त करा दिया.
तुम्हरो मंत्र विभीषण माना |
लंकेश्वर भये सब जग जाना ||
अनुवाद- आपके परम मंत्र (परामर्श) को विभीषण ने ग्रहण किया. इसके कारण वे लंका के राजा बन गये. इस बात को सारा संसार जानता है.
जुग सहस्त्र जोजन पर भानू |
लील्यो ताहि मधुर फल जानू ||
अनुवाद-हे हनुमानजी! (जन्म के समय ही) आपने दो हजार योजन की दूरी पर स्थित सुर्य को (कोई) मीठा फल समझकर निगल लिया था.
प्रभु मुद्रिका मेली मुख माहि |
जलधि लाँधि गए अचरज नहीं ||
अनुवाद- आप अपने स्वामी श्रीरामचंद्र्जी की मुद्रिका (अंगूठी) को मुख में रखकर (सौ योजन विस्तृत) महासमुद्र को लॉघ गये थे. (आपकी अपार महिमा को देखते हुए) इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं है.
दुर्गम काज जगत के जेते |
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते ||
अनुवाद- हे महाप्रभु हनुमानजी! संसार के जितने भी कठिन कार्य है वे सब आपकी कृपा से सरल हो जाते है.
राम दुआरे तुम रखवारे |
होत न आग्या बिनु पैसारे||
अनुवाद- भगवान श्रीरामचंद्रजी के द्वार के रखवाले (द्वारपाल) आप ही हैं. आपकी आज्ञा के बिना उनके दरबार में किसी का प्रवेश नहीं हो सकता. (अर्थात भगवान राम की कृपा और भक्ति प्राप्त करने के लिये आपकी कृपा बहुत आवश्यक है.)
सब सुख लहै तुम्हारी सरना |
तुम रच्छ्क काहू को डरना ||
अनुवाद- आपकी शरण में आये हुए भक्त को सभी सुख प्राप्त हो जाते है. आप जिसके रक्षक हैं उसके सभी प्रकार के (दैहिक,दैविक,भौतिक) भय समाप्त हो जाते हैं.
आपन तेज सम्हारो आपै |
तीनों लोक हाँक तें काँपै ||
अनुवाद- अपने तेज (शक्ति,पराक्रम,प्रभाव,पौरूष और बल) के वेग को स्वंय आप ही धारण कर सकते हैं. अन्य कोई भी उसे संभाल सकने मे समर्थ नहीं है. आपके एक हुंकार मात्र से तीनों लोक काँप उठते हैं.
भूत पिशाच निकट नहीं आवैं|
महावीर जब नाम सुनावै ||
अनुवाद- महाबीर (आपके) नाम लेने मात्र से भूत-पिशाच समीप नहीं आ सकते.
नासैं रोग हरें सब पीरा |
जपत निरंतर हनुमत बीरा ||
अनुवाद- हे वीरवर महाप्रभु हनुमानजी ! आपके नाम का निरंतर जप करने से सभी रोग नष्ट हो जाते हैं और सारी पीडाए दूर हो जाती हैं.
संकट तें हनुमान छुडावैं|
मन क्रम बचन ध्यान जो लावै ||
अनुवाद- हे हनुमानजी ! यदि कोई मन,कर्म और वाणी द्वारा आपका (सच्चे ह्रदय से) ध्यान करे तो निश्चय ही आप उसे सारे संकटो से छुट्कारा दिला देते हैं.
सब पर राम तपस्वी राजा |
तिन्ह के काज सकल तुम साजा ||
अनुवाद- तपस्वी राम सारे संसार के राजा हैं. (ऐसे सर्वसमर्थ) प्रभु के समस्त कार्यो को आपने ही पूरा किया.
और मनोरथ जो कोई लावै |
सोइ अमित जीवन फल पावे ||
अनुवाद- हे हनुमानजी! आपके पास कोई किसी प्रकार का भी मनोरथ (धन,पुत्र,यश आदि की कामना) लेकर आता है, (उसकी) वह कामना पूरी होती है. इसके साथ ही ‘अमित जीवन फल’ अर्थात भक्ति भी उसे प्राप्त होती है.
चारों जुग परताप तुम्हारा |
है परसिद्ध जगत उजियारा||
अनुवाद- जगत को प्रकाशित करने वाले आपके नाम का चारों युगों (सतयुग, त्रेता, द्वापर और कलियुग) में प्रसिद्ध रहता चला आया.
साधू संत के तुम रखवारे |
असुर निकंदन राम दुलारे ||
अनुवाद- आप साध-संत की रक्षा करने वाले हैं, राक्षसों का संहार करने वाले हैं और श्रीरामजी के अतिप्रिय हैं.
अष्ट सिद्दी नवनिधि के दाता |
अस वर दीन्ह जानकी माता ||
अनुवाद- माता जानकी ने आपको वरदान दिया है कि आप भक्तों को आठों प्रकार की सिद्धिया (अणिमा,महिमा,गरिमा,लघिमा,प्राप्ति,प्राकाम्य,ईशत्व ,वशित्व) और नवों प्रकार की निधिया (पद्म,महापद्म,शंख,मकर,कच्छ्प,मुकुंद,कुंद,नील,खर्व) को प्रदान करने में समर्थ होंगे.
राम रसायन तुम्हरे पासा |
सदा रहो रघुपति के दासा ||
अनुवाद- अनन्त काल से आप भगवान श्रीराम के दास हैं. अत: रामनामरूपी रसायन (भवरोग की अमोद्म औषधि) सदा आपके पास रहती है.
तुम्हरे भजन राम को पावै|
जनम जनम के दुःख बिसरावै ||
अनुवाद-आपके भजन से प्राणियों को जन्म-जन्म के दुखों से छुटकारा दिलाने वाले भगवान श्रीरामकी प्राप्ति हो जाती है.
अंत काल रघुबर पुर जाई |
जहा जन्म हरी भक्त कहाई||
अनुवाद-अंत समय में मृत्यु होने पर वह भक्त प्रभु के परमधाम (साकेतधाम) जायेगा और यदि उसे जन्म लेना पडा तो उसकी प्रसिद्धि हरि भक्त के रूप में हो जायगी.
और देवता चित न धरई|
हनुमत सेइ सर्व सुख करई ||
अनुवाद- आपकी इस महिमा को जान लेने के बाद कोई भी प्राणी किसी अन्य देवता को ह्रदय में धारण न करते हुए भी आपकी सेवा से उसे जीवन के सभी सुख प्राप्त हो जायेगें.
संकट कटै मिटै सब पीरा |
जो सुमिरै हनुमत बलबीर ||
अनुवाद- जो व्यक्ति वीरश्रेष्ठ श्रीहनुमानजी का स्मरण करते हैं उनके समस्त संकट दूर हो जाते हैं और संसार की जन्म-मरणरूपी यातना दूर हो जाती है.
जय जय जय हनुमान गुसाई |
कृपा करहु गुरु देव की नाई ||
अनुवाद- श्रीहनुमानजी! आपकी तीनों काल में (भूत,भविष्य,वर्तमान) जय हो, आप मेरे स्वामी हैं, आप मुझ पर श्रीगुरूदेव के समान कृपा कीजिए.
जो सत बार पाठ कर कोई |
छूटहि बंदि महा सुख होई ||
अनुवाद- जो इस (हनुमान चालीसा) का सौ बार पाठ करता है, वह सारे बंधनों और कष्टों से छुटकारा पा जाता है और उसे महान सुख (परमपद-लाभ) की प्राप्ति होती है.
जो यहे पढै हनुमान चालीसा |
होय सिद्धि साखी गौरीसा||
अनुवाद- जो इस हनुमान चालीसा का पाठ करेगा उसे निश्चित ही सिद्धि (लौकिक एवम पारलौकिक) सभी प्रकार के उत्तम फल प्राप्त होंगे.
तुलसीदास सदा हरी चेरा |
कीजै नाथ हृदय मह डेरा ||
अनुवाद- हे नाथ श्रीहनुमानजी! आप तुलसीदास सदा-सर्वदा के लिये श्रीहरि (भगवान श्रीराम) का सेवक है. ऐसा समझकर आप उसके ह्रदय भवन में निवास कीजिए.
दोहा
पवनतनय संकट हरन , मंगल मूरतिरूप |
राम लखन सीता सहित , हृदय बसहु सुर भूप ||
अनुवाद- हे पवनसुत श्रीहनुमानजी! आप सारे संकटों को दूर करने वाले है, साक्षात कल्याणस्वरूप हैं. आप भगवान श्रीरामचन्द्रजी,लक्ष्मण और माता सीतजी के साथ मेरे ह्रदय में निवास कीजिए.
बाल समय रवि भक्षि लियो तब,
तीनहुं लोक भयो अंधियारों I
ताहि सों त्रास भयो जग को,
यह संकट काहु सों जात न टारो I
देवन आनि करी बिनती तब,
छाड़ी दियो रवि कष्ट निवारो I
को नहीं जानत है जग में कपि,
संकटमोचन नाम तिहारो I को – १
अनुवाद- हे महावीर स्वामी हनुमानजी! जब आप बालक थे तब आपने सुर्य को फल समझकर निगल लिया थ. इससे तीनों लोकों में अंधकार छा गया था और सारा संसार भयभीत हो गया था. इस संकट को दूर करने में कोई भी समर्थ न हो पा रहा था. चारों ओर से निराश होकर देवताओं ने जब आप से प्रार्थंना की, तब आपने सूर्य को छोड दिया. इस प्रकार उनका और सारे संसार का कष्ट आपने दूर किया. संसार में ऐसा कौन है जो आपके ‘संकट्मोचन’ नाम से परिचित नहीं है.
बालि की त्रास कपीस बसैं गिरि,
जात महाप्रभु पंथ निहारो I
चौंकि महामुनि साप दियो तब ,
चाहिए कौन बिचार बिचारो I
कै दिव्ज रूप लिवाय महाप्रभु,
सो तुम दास के सोक निवारो I को – २
अनुवाद-बालि के भय के कारण कहीं शरण न पाकर वानरराज सुग्रीव छिपकर (ऋष्यमूक) पर्वत पर रहते थे, जहौ मतंग मुनि के शाप के कारण बालि प्रवेश नहीं करता था. महाप्रभु श्रीरामचंद्रजी लक्ष्मणजी के साथ जब सीताजी को खोजते हुए उधर से जा रहे थे, तब सुग्रीव उन्हें बालिका भेजा हुआ योद्धा समझकर भयभीत हो यह विचार करने लगा कि अब क्या करना चाहिए? हे हनुमानजी! तब आप ब्राह्मण का रूप धारण करके भगवान श्रीरामचंद्रजी को वहॉ ले आये. इस प्रकार आपने दास सुग्रीव के महान भय और शोक को दूर किया. संसार में ऐसा कौन है जो आपके ‘संकट्मोचन’ नाम से परिचित नहीं है.
अंगद के संग लेन गए सिय,
खोज कपीस यह बैन उचारो I
जीवत ना बचिहौ हम सो जु ,
बिना सुधि लाये इहाँ पगु धारो I
हेरी थके तट सिन्धु सबे तब ,
लाए सिया-सुधि प्राण उबारो I को – ३
अनुवाद- सीताजी की खोज के लिये जब वानर अंगद के साथ प्रयाण कर रहे थे, तब वानरराज सुग्रीव ने उन्हें यह आदेश दिया था कि सीताजी का पता लगाये बिना जो यहॉ वापस लौटकर आयेगा, वह मेरे हाथों से जीवित नहीं बचेगा. किंतु बहुत खोजने-ढूँढ्ने के बाद भी जब सीताजी का कहीं पता न लगा, तब सारे वानर जीवन से निराश होकर समुद्र तट पर थककर बैठ गये. उस समय सीताजी का पता लगाकर आपने उन वानरों के प्राणों की रक्षा की. संसार में ऐसा कौन है जो आपके ‘संकट्मोचन’ नाम से परिचित नहीं है.
रावण त्रास दई सिय को सब ,
राक्षसी सों कही सोक निवारो I
ताहि समय हनुमान महाप्रभु ,
जाए महा रजनीचर मारो I
चाहत सीय असोक सों आगि सु ,
दै प्रभुमुद्रिका सोक निवारो I को – ४
अनुवाद- रावण ने माता सीताजी को इतना संताप और कष्ट पहुँचाया था कि उन्होंने सारी राक्षसियो से प्रार्थना की कि मुझे मारकर तुमलोग मेरे शोक का निवारण कर दो. मैं भगवान श्रीरामजी के बिना अब जीना नहीं चाहती. हे महाप्रभु हनुमानजी! उसी समय वहाँ पहुँचकर आपने बडे- बडे राक्षस योद्धाओं का संहार कर दिया. शोक से अत्यन्त संतप्त होकर सीताजी स्वयं को भस्म करने के लिये अशोक वृक्ष से अग्नि की याचना कर रही थी, उसी समय आपने उन्हें भगवान श्रीरामजी की अँगूठी देकर उनके महान शोक का निवारण कर दिया. संसार में ऐसा कौन है जो आपके ‘संकट्मोचन’ नाम से परिचित नहीं है.
बान लाग्यो उर लछिमन के तब ,
प्राण तजे सुत रावन मारो I
लै गृह बैद्य सुषेन समेत ,
तबै गिरि द्रोण सु बीर उपारो I
आनि सजीवन हाथ दिए तब ,
लछिमन के तुम प्रान उबारो I को – ५
अनुवाद- जब रावण–सुत मेघनाद के बाण (वीरघातिनी शक्ति) की चोट से लक्ष्मणजी के प्राण निकलने ही वाले थे, तब आप लंका से सुषेण वैद्य को उसके घर सहित उठा लाये तथा (सुषेण वैद्य के परामर्श से ) द्रोण पर्वत को उखाड्कर संजीवनी बूटी भी ला दी. इस प्रकार आपने लक्ष्मणजी के प्राणों की रक्षा की.,संसार में ऐसा कौन है जो आपके ‘संकट्मोचन’ नाम से परिचित नहीं है.
रावन जुद्ध अजान कियो तब ,
नाग कि फाँस सबै सिर डारो I
श्रीरघुनाथ समेत सबै दल ,
मोह भयो यह संकट भारो I
आनि खगेस तबै हनुमान जु ,
बंधन काटि सुत्रास निवारो I को – ६
अनुवाद- रावण ने युद्ध का (नागास्त्र का) आवाहन करके (घोर युद्ध करते हुए) सारी सेना को नागपाश में बाँध दिया था. इस महान संकट के प्रभाव से प्रभु श्रीरामचंद्रजी समेत सारी सेना मोहित हो गयी थी. किसी को इससे मुक्ति का कोई उपाय न सूझ रहा था. हे हनुमानजी! तब आपने ही गरूड को बुलाकर यह बंधन कटवाया और सबको घोर त्रास से मुक्त किया. संसार में ऐसा कौन है जो आपके ‘संकट्मोचन’ नाम से परिचित नहीं है.
बंधू समेत जबै अहिरावन,
लै रघुनाथ पताल सिधारो I
देबिन्ह पूजि भलि विधि सों बलि ,
देउ सबै मिलि मन्त्र विचारो I
जाये सहाए भयो तब ही ,
अहिरावन सैन्य समेत संहारो I को – ७
अनुवाद- अहिरावण जब लक्ष्मणजी के साथ भगवान श्रीरामचंद्रजी को पातालपुरी में उठा ले गया था और वहाँ राक्षसों के साथ बैठकर यह विचार कर रहा था कि भलीभाँति देवी की पूजा करके इनकी बलि चढा दी जाय. तब आपने ही वहाँ पहुँचकर सेनासहित अहिरावण का संहार करके भगवान श्रीराम और लक्ष्मण के सहायक बने.संसार में ऐसा कौन है जो आपके ‘संकट्मोचन’ नाम से परिचित नहीं है.
काज किये बड़ देवन के तुम ,
बीर महाप्रभु देखि बिचारो I
कौन सो संकट मोर गरीब को ,
जो तुमसे नहिं जात है टारो I
बेगि हरो हनुमान महाप्रभु ,
जो कछु संकट होए हमारो I को – ८
अनुवाद- हे परमवीर महाप्रभु हनुमानजी! आप अपने कार्यों को देखकर विचार कीजिए कि आपने देवताओं कि बडे-बडे कठिन कार्यों को पूरा किया है. तब फिर मुझ दीन-हीन का ऐसा कौन सा संकट हो सकता है, जिसे आप दूर नहीं कर सकते ? हे महाप्रभु हनुमानजी! हमारे जो कुछ भी संकट हैं आप उन्हे शीघ्र ही दूर करने की कृपा करं. .संसार में ऐसा कौन है जो आपके ‘संकट्मोचन’ नाम से परिचित नहीं है.
दोहा
लाल देह लाली लसे , अरु धरि लाल लंगूर I
वज्र देह दानव दलन , जय जय जय कपि सूर II
अनुवाद-आपकी लाल देह की लाली अत्यन्त शोभायमान हो रही है, आपकी पूँछ भी लाल है. वज्र के समान आपकी सुदृढ देह दानवों का नाश करने वाली है. हे महाशूर हनुमानजी! आपकी जय हो! जय हो!! जय हो!!!
आपका आपका बहुत बहुत घन्यवाद.
thanx
सीया वर राम चन्दृ की जय.
Thank u Vivek ji….
bolo siya pati ram chandra ki jai
adbhut, bahut prasanta huyi aapke is lekh ko padh kar.
very nice .. thanx
Bahut hi acha laga isko jitana bhi suno jigyasa or badh jata hai.
very nice … jai ho tulsi das ki …
Jai Shree raam
jai ram ji ki..
jai shree RAM!!!!!!!!
JAI SREE RAM.Every SREE RAM NAVMI, we remember this site.Thank you.God bless you.
tis is not the complete shlok
JAI SITARAM….JAI HANUMAN BABA
jay jay siya ram
jai jai ram jai siyaram
jai sita ram……
last se dusri line galat h.
sahi is prakar h-:
ehi bhanti gauri ashish suni siya sahit hiya harshit ali.
very nice lyrics by t das
BOLO SITARAM DARBAR KI JAI.
Jai shri ram”ram stuti jo padhta h or sunta h uske sare dukh door ho jate h”
raja ramchandra ji ki jai
i like it so much……………. mujhe ye bhut pasand h or mujhe lgta hai ye sbko pasand hona chahiy……
Aap ne sahi kaha hai mujhe bhi bahut pasand hai
very good
i like this photo.
jb n khi fas jata hu ya koi kam nhi hota toh m yhi sunta ho or padhta hu or thodi hi der me solution mil jata hai
……SHREE RAM KI kIrpa ho jati hai ………………isi band krne ka mann hi nhi krta …………………….
Shree Ram Shree Ram Shree Ram Shree Ram Shree Rammmmmmmmmmmmm…………………….
SHREE RAM LAXMAN JANKI JAI BOLO SHREE RAM KI
Chant Hare Krishna & Be Happy……
bolo raja ram chandra ki jay
yeh stuti bhut priy lagi
download
shri ram jai ram jai jai ram ………….
BEKAR
Jai Shree Ram.
JAI SHREE RAM
every day I read this sloka with my family members
jai shree ram.. bol siyapatiram ki jai…..jai hanuman
JO MAN SE RAM KA NAAM LETA HAI USKE SARE PAP MIT JATE HAI
TO PREM SE BOLO SITA RAM KI JAI
Siyapati Ramchandra ki jay!!!!!
jay siyaram jay-jay ram
Sivar Ramchandra Ki Jay …. Pawansut Hanuman Ki Jai …. Jai Jai Siyaram..
BAHUT SUNDER BANAYA HAI MANN KO SHANTI MILTI HAI
Can anybody please mention the original book of Goswami Tulsidas (it is not Ramcharitmanas or Hanuman Chalisa or Vinay Patrika) to which this Bhajan belongs to?
i am sorry whoever has posted this
this not wrong. you have added few extra lines.
“एही भांति गोरी असीस सुनी सिय सहित हिं हरषीं अली,
तुलसी भावानिः पूजी पुनि-पुनि मुदित मन मंदिर चली.
जानी गौरी अनूकोल, सिया हिय हिं हरषीं अली,
मंजुल मंगल मूल बाम अंग फरकन लगे.”
these lines are not related to shree ram strotra
these are from Ram charit manas.
* sorry for typographic error in my above comment.
“this is wrong”
Thnks … its delight 🙂
yeh blog dekh kar sukhad anubhav hua. aap sadhuvad ke patra hain. dhanyawad. AP Bharati, Rudrapur (Uttarakhand)
Roj padhne se Man ko shanti melati hai
Hridya ko itna mantramughdha krta h ki man krta h samast jeevan PRABHU SHREE RAM ke charno me vyateet kar du. Prabhu hme itni shakti do ki hum aapki pawan shree janmabhoomi par SHREE AYODHYA JEE me bhavya SHREE RAM MANDIR KA NIRMAAN KAR SAKE. Dhanyawaad nka jinhone ye post kiya PRABHU ka aashhrvaad unpar bana rhe. JAI SHREE RAM
fnmjkdskjbd fg
jai ram
Jai shree ram
JAI SHREE RAM……
i understand i needs to be complete, if someone can do it please do. Shri Ram blessings be upon you.
until then, sing it and live it. Its wonderful and peace ful. Jai Shri Ram
I want all above stanza’s meaning in hindi
Shree ram jai ram , je je ram……
VERY NCE
I LIKE THIS BHAJAN
ALL HINDU WANT TO KNOW THIS BHAJAN
“SHREE RAM” MAN KO SHANTI DETA HAI, DUKH DUR KARTA HAI AUR KHUSHIYALI CHA JATI HAI
“SHREE RAM” NAAM SE KHUSHIYALI CHA JATI HAI
jai sri ram jai ho tulsidas
jay shree ram
Finaly i found it. thank you for posting it. Jai Shri Raam
man jaahi raachehu milahi so var sahaj sunder saavro,karuna nidhan sujan sheel sanehu jaanat raavro.
JAI SHRI RAM ……………..
jai shree ram dear’s keep faith on god because kamna hirday ki suna key dekh ley shree ram kast haregey gun gaa key dekh ley
Jai shree Ram
compleate stuti nhi h
राहुल जी नमस्ते. Help me with complete stuti. It will be helpful for every one.
मनु जाहि राचेउ मिलिहि सो बरु सहज सुंदर सावरो.
करुना निधान सुजान सीलु सनेहु जानत रावरो.
Shriman aapne ye Shlok nahi likha hai…………
radhe radhe !!
आपका बहुत बहुत घन्यवाद. जय सीता राम.
Jai Hanuman, Jai Shree Ram
मनु जाहि राचेउ मिलिहि सो बरु सहज सुंदर सावरो.
करुना निधान सुजान सीलु सनेहु जानत रावरो.
Shriman aapne ye Shlok nahi likha hai………
Jai Jais sita ram
Jai Jai Shri Ram. Aapke is kaarya ke liye Bhagwaan sadav aap par apni kripa banaye rakhein. Siyavar Ram Chandra ki Jai!!
जय सीया राम.
Bahut bahut dhanyabad Bhagwan ke Bhajan ka Arth samjhane ke liye. Bahut Sundar.
jay shari ram
jay hanuman
jay sita ram
श्री हनुमान जी माता सीता का खोज करके वापस आये तो श्री राम ने हनुमान से पूछा हनुमान क्या सीता मुझे कभी याद करती है अगर याद करती है तो कोई सन्देश जरूर कहा होगा
तब हनुमान ने कहा प्रभु आप ये क्या कह रहे वह तो आप के वियोग में दिन रात ऐसे रहती है
सिंहनी जैसे कटघरे में रसना जैसे दांतो में वेसे है वह सतवंती उस रजनीचर
मदमातो में
और चलते समय मुझसे कहा जा के कहना की
दिन रात काल के मुँख में हूँ
पर प्राण न हाय निकलते है
दर्शन के प्यासे नैना ये
जीवन को रोके रहते है
और चलते समय यह
चुंडा मणि मुझे दिया
प्रभु अब इसे पकड़िए गा
दुःख भरी कथा बैदेही
का कब तलक कहा
तक सुनिए गा
Jai siya var ramchandr ki jay
Pavan sut hanumaan ki jay
Which verses and in which kand of ramcharitmanas does this song… shree ram chandra kripalu bhajman … features????
jai shree ram
Jai Shri Ram….
पवन तनय संकट हरन , मंगल मूरति रुप ।
राम लखन सीता सहित , हृदय बसहुँ सुर भूप ॥
सियावर रामचन्द्र की जय
उमापति महादेव की जय
पवन सुत हनुमान की जय
बोले रे भाई सब संतन की जय॥
भाईयोँ श्री राम मंदिर के निर्माण हेतु जातिवाद को भूल कर कृपया एक हो जाईए
इतने हिँदु होते हुए हम अपने आराध्य देव का मंदिर नहीँ बना सकते तो धिक्कार है हमेँ ।
जय जय श्री राम
It seems like there are a few different versions of this bhajan, and in English translation I’ve only been able to find one 5 verse version. But some versions in Hindi appear to extend to 7 or 8 verses.
Is anuvad ko padh kar bahut achch laga. Thank you very much. Jai Shri Ram.